हाल के दिनों में भारत के कई राज्यों से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। एक कफ सिरप, जिसे बच्चों को खांसी से राहत दिलाने के लिए दिया गया, वह उनके लिए 'ज़हर' साबित हुआ। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कथित तौर पर दूषित कफ सिरप पीने से अब तक लगभग 18 से 23 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिसने देश के स्वास्थ्य और दवा नियामक प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और राजस्थान के कुछ इलाकों में 'कोल्ड्रिफ' (Coldrif) नामक कफ सिरप पीने के बाद बच्चों के स्वास्थ्य बिगड़ने और कई मासूमों की जान जाने के मामले सामने आए हैं। शुरुआती जांच में पता चला है कि इस सिरप में अत्यधिक जहरीला रसायन डाई एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा 48.6% तक पाई गई, जबकि इसकी स्वीकार्य सीमा बहुत कम या न के बराबर होनी चाहिए।
डाई एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) का उपयोग आमतौर पर औद्योगिक उत्पादों जैसे एंटी-फ्रीज और ब्रेक ऑयल में किया जाता है, न कि दवाओं में। यह एक सस्ता विकल्प है जिसे कुछ कंपनियां मुनाफे के लिए दवा बनाने में इस्तेमाल करती हैं, जिसका सीधा और घातक असर किडनी पर होता है और यह जानलेवा साबित होता है।
राज्यों में हड़कंप और बैन की कार्रवाई
इस ख़तरनाक खुलासे के बाद हड़कंप मच गया है। तमिलनाडु की दवा निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स द्वारा निर्मित 'कोल्ड्रिफ' सिरप को कई राज्यों में तुरंत प्रभाव से बैन कर दिया गया है। जिन राज्यों ने अब तक इसकी बिक्री पर रोक लगाई है, उनमें प्रमुख हैं:
* मध्य प्रदेश
* राजस्थान
* केरल
* तमिलनाडु
* महाराष्ट्र
उत्तर प्रदेश में भी जांच के आदेश दिए गए हैं।
इसके अलावा, मध्य प्रदेश में बच्चों को यह जहरीला सिरप लिखने वाले एक डॉक्टर को भी गिरफ्तार किया गया है और सिरप निर्माता कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई है।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला, CBI जांच की मांग
मासूमों की मौत का यह गंभीर मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की है,
जिसमें निम्नलिखित माँगें की गई हैं:
* बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार इस पूरे मामले की CBI जांच कराई जाए।
* जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करें।
* विषैले सिरप बनाने वाली कंपनियों के लाइसेंस तुरंत रद्द किए जाएं और उनके उत्पादों को बाजार से वापस मंगाने की व्यवस्था की जाए।
* देश में एक सख्त 'ड्रग रिकॉल पॉलिसी' बनाई जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह केवल कुछ कंपनियों की गलती नहीं, बल्कि देश की ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम की विफलता है।
यह पहली बार नहीं...
यह दुखद है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी, भारतीय कफ सिरप में DEG पाए जाने से:
*2022 में गाम्बिया में लगभग 70 बच्चों की मौत हुई थी।
*2023 में उज़्बेकिस्तान में भी कई बच्चों की मौत हुई थी।
भारत में भी, 5 साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में भी एक कफ सिरप से 12 बच्चों की जान गई थी।
आगे की राह क्या?
केंद्र सरकार ने अब 2 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह का सिरप न देने के लिए सख्त गाइडलाइन जारी की है। लेकिन सवाल यह है कि गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control) को लेकर हमारी एजेंसियां इतनी लापरवाह क्यों हैं? कब हमारा ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम इतना मज़बूत होगा कि मुनाफ़े के लालच में कोई भी कंपनी बच्चों की जान से खिलवाड़ न कर सके?
यह समय है कि सख्त कार्रवाई हो, ज़िम्मेदारी तय हो और पूरे सिस्टम में पारदर्शिता लाई जाए। इन मासूमों की मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि दवा के नाम पर 'ज़हर' कब तक बिकता रहेगा।