
“भाइयों बहनों, मैंने सिर्फ़ देश से 50 दिन मांगे हैं। 30 दिसंबर तक मुझे मौक़ा दीजिए मेरे भाइयों बहनों। अगर 30 दिसंबर के बाद कोई कमी रह जाए, कोई मेरी ग़लती निकल जाए, कोई मेरा ग़लत इरादा निकल जाए… आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर..देश जो सज़ा करेगा वो सज़ा भुगतने को तैयार हूं.”
नोटबंदी लागू करने के समय तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत से नई करेंसी छापी गई थी। हैरानी की बात है कि ये दस्तखत उनके गवर्नर बनने से 17 महीने पहले ही ले लिए गए थे।क्या इस अनियमितता के लिए प्रधानमंत्री “चौराहे पर आकर सज़ा भुगतने को तैयार हैं”? क्या वो मात्र स्पष्टीकरण देने को भी तैयार हैं?
दरअसल, एक RTI का जवाब देते हुए करंसी नोट प्रेस नासिक ने बताया है कि तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नए 500 रूपए के नोट अप्रैल 2015 से लेकर 2016 के बीच छापे गए थे। ये नोटबंदी की घोषणा होने से लगभग 19 महीने पहले हुआ था।
ध्यान देने वाली बात है कि उर्जित पटेल तो 5 सितंबर 2016 को आरबीआई के नए गवर्नर के तौर पर नियुक्त किए गए थे।
साफ़-साफ़ शब्दों में कहा जाए तो उर्जित पटेल के आरबीआई गवर्नर नियुक्त होने से 17 महीने पहले ही उनके दस्तखत वाले 500 रूपए के नोट छाप लिए गए थे। ये काफी बड़ी अनियमितता है।
इस पूरे मामले को समझाते हुए रिटायर्ड आईपीएस विजय शंकर सिंह लिखते हैं, “करेंसी नोट प्रेस, नासिक ने RTI के जवाब में बताया है कि तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नए डिजाइन के ₹500 मूल्य के नोट पीएम द्वारा 8/11/2016 को नोटबंदी की घोषणा के 19 महीने पहले 15/04/2015 को छापे गए थे।
जबकि उर्जित पटेल RBI के गवर्नर 5/10/2016 में नियुक्त किए गए थे। स्पष्ट है कि, उर्जित पटेल के आरबीआई गवर्नर नियुक्त होने के 17 महीने पहले ही उनके हस्ताक्षर वाले ₹500 के नोट छाप लिए गए थे।
इतनी बड़ी अनियमितता कैसे हुई ? ऐसे ही नहीं डा.मनमोहन सिंह ने कहा था कि “नोटबंदी एक संगठित लूट है।”
क्या सही में नोटबंदी एक “संगठित लूट” है? क्या “प्रधान-सेवक” देश की जनता के सामने आकर इन सवालों का जवाब देंगे?
